Wednesday, May 18, 2022

गुड़-गुड़


चिड़िआ चूँ-चूँ  करती है,
मेंढ़क टर्र-टर्र करता है। 
दस्त से ग्रस्त पेट यह मेरा,
दिनभर गुड़-गुड़ करता है। 

                    सोते सोते आँखें सूज गई,
                    खिचड़ी खा-खा कर स्वाद मर गया। 
                    नींबू इतने महंगे हुए कि,
                    नींबू-पानी पीना वर्जित हो गया। 

बिजली तो मेहमान हो गयी, 
गर्मी से बुरा हाल हो गया,
Toilet के इतने चक्कर काटे,
कि पानी भी खत्म हो गया। 

                    छुट्टी जो ले ली मैंने,
                    बॉस भी नाराज़ हो गया। 
                    कम्पनी को इतना बड़ा घाटा,
                    मेरी ही वजह से जैसे हो गया। 

बर्फ का गोला ना खाता तो,
पेट गुड़-गुड़ ना करता। 
ना मैं लिखता, ना कोई पढ़ता,
सब का समय बच जाता।


My 1st poem written when I was suffering from diarrhea.





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