Tuesday, August 22, 2023

कामयाबी

आज का दिन मेरे लिए बहुत ख़ास था। आज alumni meet में 15 साल बाद मैं अपने दूसरे-पहले छात्रों से मिलने जा रहा था। नहीं, आपने ठीक पढ़ा है - "दूसरे-पहले छात्र" ही लिखा था मैंने। Retirement के बाद, नए school में मेरी पहली class इन्हीं छात्रों की थी। तो यह हो गए मेरी दूसरी inning में मेरे पहले छात्र - मेरे "दूसरे-पहले छात्र"। 


मुझे वह दिन भुलाये नहीं भूलता - जैन school में मेरा पहला दिन। मेरी नियुक्ति PT teacher के तौर पर हुई थी। 58 वर्ष की आयु में यह मेरी दूसरी inning की शुरुआत थी। मुझे ग़ुमान था अपने बलिष्ठ शरीर पर जो मैंने इस उम्र में भी maintain कर रखा था। पहले दिन मुझे 9-D में जाना था। जब मेरे कदम उस class की तरफ़ बढ़े, मुझे तभी एहसास हो गया की यह class कुछ अलग होने वाली है। PT का period आते ही बच्चे उधम मचाने लगते हैं और शोर मचाते हुए खेलने दौड़ते हैं। लेकिन इस class के बाहर इतना सन्नाटा था जैसे class खाली हो। मैंने दरवाज़े को हल्का सा खोला और अंदर झाँका - class खचा-खच भरी हुई थी। सभी 60-65 लड़के अपनी-अपनी किताबें खोल कर पढ़ाई कर रहे थे। दरवाज़ा हल्का सा ही खुला था परन्तु, लड़कों ने मुझे तुरंत देख लिया। जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुआ, सब छात्र "class stand" में खड़े हो गए। मैंने अपना परिचय दिया - 

मैं आपका नया PT teacher हूँ, आप मुझे 'डोगरा sir' बुला सकते हैं। 

Class से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। मैंने पहले दिन थोड़ा सख्त रुख अपनाया और चिल्ला कर कहा - क्या किताबों में घुसे पड़े हो? मेरी उम्र तक आते आते तुम्हारा शरीर जवाब दे देगा। चलो ground में !!

Class monitor को कह कर, मैं sports room से उनके लिए football लेने चला गया। Football ले कर जब मैं ground में पहुँचा तो भौचक्का रह गया!!! Ground खाली था। सब बच्चे कहाँ चले गए? इन्होंने अपने teacher की बात भी नहीं मानी? मैं गुस्से से तिलमिला रहा था। थोड़ा आगे बढ़ कर देखा तो बच्चे ground के side पर लगे पेड़ों के नीचे बैठे अपनी किताबों से पढ़ाई कर रहे थे। मैं सन्न रह गया। मेरे कहने के मुताबिक सब बच्चे ground में आ गए थे, लेकिन मैंने उन्हें खेलने को तो बोला ही नहीं था। मैं बच्चों से मायूस होने के साथ-साथ हैरान भी था। चूंकि आज मेरा पहला दिन था, मैंने अपने गुस्से को काबू किया और सोचा बच्चों से बात की जाये। मैंने बच्चों के पास जा कर उनसे पूछा - 

- क्या हुआ? सब लोग पढ़ाई क्यों कर रहे हैं? खेलना पसंद नहीं है?

जवाब मिला- सर, अगले period में science का test है। 

- हम्म्म। ठीक है। कौन से सर पढ़ाते हैं science ?

        - जी, गुप्ता सर। 

मेरी उनसे आज की मुलाकात इतनी ही थी। मैंने staffroom जा कर गुप्ता सर से बात की। 

-सर, यह 9-D के लड़के बहुत अकड़ू लगते हैं। 

गुप्ता सर: क्यों, क्या हुआ?

मैंने उनको पूरी बात बताई। 

    - अरे डोगरा सर, यह 9-D है। यह बच्चे केवल 1 बात में विश्वास रखते हैं - पढ़ाई करके अव्वल आना और खूब नाम कमाना। एक और बात पर गौर कीजियेगा - इतना competition होने के बाद भी इनमें एकता और भाई-चारे की कोई कमी नहीं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले साल 10th board में इन्ही में से कोई बच्चा state में top करेगा। 

मैं गप्ता सर की यह बातें सुन कर हैरान था। अपने जीवन के 35 साल की नौकरी में मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था। आपको हर class में कुछ पढ़ाकू बच्चे मिल जाते हैं, पर यहाँ तो पूरी की पूरी class ही पढ़ाकू थी !!! गुप्ता सर के कहने पर मैं इस class को observe करने लगा। मैंने पाया की यह बच्चे कुछ अलग ही मिट्टी के बने हैं। Teachers का निरादर तो ये सोच भी नहीं सकते। अगर कोई teacher कुछ बोल दे तो तुरंत उनकी बात मान लेते हैं। आपस में इतना लगाव कि क्या बतायूं। अगर किसी के test में कम marks आ जाएं तो पहले तो दोस्त उस पर बिगड़ जाते और फिर उसको lesson समझा भी देते। कुछ बच्चे साधारण परिवारों से थे, तो कुछ संपन्न परिवारों से। परन्तु जब ये साथ होते तो बिना किसी औपचारिकता के बस दोस्त होते। मुझे हैरानी इस बात पर थी कि 60-65 बच्चे एक-जैसे कैसे हो सकते हैं? क्या यह कोई चमत्कार था? जो भी हो, यह बात तो तय थी की ये बच्चे अपने जीवन में बहुत कामयाब होंगे और खूब नाम कमाएंगे - सिर्फ अपनी पढ़ाई की वजह से ही नहीं, बल्कि अपने व्यवहार की वजह से भी। 



---- वर्तमान ----

Alumni meet का time 5 बजे का था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो बाकी teachers पहले ही आ चुके थे। बच्चों के शोर से उनके उत्साह का अंदाज़ा हो रहा था। यह बच्चे पहले से बदल चुके थे। किसी के बाल कम हो गए थे तो किसी का पेट निकल आया था। अपने दोस्तों से मिल कर ऐसे खुश हो रहे थे जैसे किसी बच्चे को कोई नया खिलौना मिल गया हो। हमें देख कर सब शाँत हो गए और हम सब teachers को चरण-स्पर्ष किया। आज भी अपने teachers के लिए वही सम्मान था इन में। 

कार्यक्रम शुरू हुआ। सब बच्चों ने अपना अपना परिचय देना शुरू किया। 

विवेक: Sirs, मेरा नाम विवेक है। मैं university में zoology का professor हूँ। 

इतने में अमन खड़ा हो कर ज़ोर से बोला - Sirs, यह संशोधन (research) करता है, और वह भी मकड़ियों पर। उन पर किताब भी लिख चुका है। 

सब लोग ठहाका मार कर हँस दिए। अब बारी सुनील की थी। 

सुनील: मेरा नाम सुनील है। मैं मुंबई की एक IT कंपनी में कार्यरत हूँ। 

अभिषेक(अपनी जगह पर खड़ा हो कर): Sirs, यह अपनी कंपनी में manager है। इसका 1 पैर विदेश में ही रहता है। 

सब लोग फिर से हँस पड़े। यह सिलसिला चलता रहा। जब भी कोई अपना परिचय देता, उसका कोई दोस्त खड़ा हो कर उसके बारे में और विस्तार से बताता। अनोखी बात यह थी कि सब को अपने से ज्यादा अपने दोस्तों की उपलब्धियों पर गर्व था। इनमें कोई bank manager था, तो कोई architectकुछ doctor थे, तो कुछ engineer ; कुछ विदेश में बस चुके थे तो कुछ business कर रहे थे। इनको देख कर समझ में आता था कि पैसा, शौहरत, तरक्की बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कुछ और है जो इस सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर यह बात सब को समझ आ जाए तो दुनिया का रंग कुछ और ही हो। 

करीब 2 घंटे का कार्यक्रम अब खत्म हो चला था। सब बच्चे ऐसे उदास हो रहे थे जैसे इनके अपने शरीर का कोई अंग अलग हो रहा हो। 15 साल बाद भी एक-दूसरे के लिए इतना प्यार!! इनकी कामयाबी इसी में तो थी। मेरे मन से यही दुआ निकली कि ऐसी बुद्धि, साफ मन और कामयाबी - भगवान सब को दे।