Tuesday, July 11, 2023

मेरी व्यथा

मैं एक बैरागी की तरह हूँ। ना मेरा कोई घर है, ना कोई देश; ना कोई धर्म और ना ही मेरी कोई लालसा। किसी परिंदे की तरह पूरा संसार ही मेरा है। ना मेरा कोई अपना है, ना ही किसी से कोई बैर। मैं तो बस अपना पेट भरने के लिए आपसे इतना भोजन लेता हूँ, जैसे सागर से 1 बूँद पानी। मैं उस भिक्षुक की तरह हूँ जो जगह-जगह घूम कर भोजन मांगता है और अगर दुत्कार दिया जाए, तो भूखा ही रह जाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं दिखने में भिक्षुक जैसा नहीं हूँ। और अगर भोजन दिख जाये तो मैं 1 बूँद जितना भोजन बिना किसी की सहमति के ही ले लेता हूँ। जैसे अच्छाई-बुराई, चल-अचल, शाकाहारी-मांसाहारी सभी कुदरत की देन हैं, वैसे ही मुझे कुदरत ने ऐसा बनाया है।


मैं गाना अच्छा गा लेता हूँ। परन्तु मेरे शरीर का आकार इतना छोटा है कि मेरी आवाज़ आप तक पहुँच ही नहीं पाती। और जब मैं अपनी आवाज़ सुनाने आपके करीब आता हूँ तब आप मुझे दूर भगा देते हैं।
 
आपने कहानियों में सुना-पढ़ा होगा कि अगर कोई भूखा रोटी चुराता है, तो उसको चोर नहीं कहते। तो फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों? इतनी कि मुझे देखते ही लोग मुझे जान से मार देना चाहते हैं - ज़हर दे कर, रौंद कर या पीट कर। आप ही बतायें कि अगर कोई आपके भण्डार से अनाज का 1 दाना ले ले, तो क्या उसका कत्ल कर देना न्याय है? क्या मेरा कुरूप होना इतना बड़ा अभिषाप है कि मुझे जीने का भी हक़ नहीं? किसी अदालत में मेरी कोई सुनवाई क्यों नहीं?

मैं सिर्फ 1 मच्छर ही तो हूँ, जनाब!!!


 

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