Thursday, July 31, 2025

दुआ

बात हाल-फिलहाल की है। Lotus नाम का एक society complex था। उसके मुख्य-द्वार के बाहर 2 कुत्ते रहते थे। उनके नाम थे Tommy और  Coco. उनके ये नाम कैसे पड़े, यह तो उनको भी नहीं मालुम था। लेकिन दोनों आपस में मस्त रहते। खेलते, मस्ती करते तो कभी किसी गाड़ी के पीछे भागते। भूख लगती तो खाना तलाशते और जब थक जाते तो थोड़ी देर आराम कर लेते। 

उनको Lotus के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। बस आने-जाने वाले लोगों को देखते रहते। अब तो अंदर रहने वालों की पहचान हो गई थी - कुछ अच्छे, तो कुछ बुरे। अच्छे लोगों की list में कजरी का नाम सबसे ऊपर था। वह Lotus के घरों में सफाई का काम करती थी। कजरी अपना काम खत्म करके जाते-जाते दोनों कुत्तों को रोटी डाल कर जाती। यह उसकी दिनचर्या का हिस्सा था, जिसे वह कभी नहीं भूलती। कजरी को देखते ही दोनों कुत्ते भाग कर उसकी टांगों पर लिपट जाते और अपनी पूंछ ज़ोर से हिलाते। कजरी बिना किसी औपचारिकता के बस रोटी डालती और चली जाती। इस selfie के ज़माने में, कजरी का यह व्यवहार Tommy और Coco के लिए किसी योगी के नि:स्वार्थ  व्यवहार से कम नहीं था। 

दूसरी तरफ थी शर्मा ऑन्टी। शर्मा ऑन्टी 75 वर्ष की थी और अपने घर में अकेली रहती थी। उम्र की वजह से ज्यादा कहीं आती-जाती नहीं थी, बस Lotus के अंदर ही थोड़ा टहल लेती थी। जब भी Tommy और Coco अंदर आने की कोशिश करते, वह अपनी छड़ी से दोनों को बाहर भगा देती। दोनों कुत्ते जहां कजरी को दुआ देते, वहीं शर्मा ऑन्टी जैसे लोगों को खूब कोसते। अगर कभी शर्मा ऑन्टी Lotus के बाहर आती, दोनों को तो जैसे मौका ही मिल जाता। मन में तो आता कि इस बुढ़िया को वैसे ही भगायें, जैसे वह भगा देती है। परन्तु शर्मा ऑन्टी की छड़ी देख कर रुक जाते और दूर से ही बुढ़िया पर भौंकते रहते। 

आज हल्की बरसात हो रही थी। कजरी शर्मा ऑन्टी के घर काम खत्म करके निकल ही रही थी कि शर्मा ऑन्टी ने ज़ोर से आवाज़ लगाई -

शर्मा ऑन्टी: ऐ कजरी !!! कुत्तों की रोटी तो लेती जा। रोज़ भूल जाती है। हमेशा जल्दी में ही रहती है। 

कजरी: क्या ऑन्टी, आप से खुद के काम तो होते नहीं, पर कुत्तों के लिए रोज़ रोटी बनती हो। और ये कुत्ते मुझे बिलकुल पसंद नहीं। जब भी दोनों मेरे पास आते हैं, तो मुझे बहुत डर लगता है। 

शर्मा ऑन्टी: तेरे नखरे तो बस ..... पता नहीं इतनी बरसात में उन दोनों को कुछ खाने को मिला होगा या नहीं। ले जा, दोनों दुआ देंगे। 


अब बेचारे Tommy और Coco को क्या पता कि उनकी दुआ का असली हकदार कौन है। वो तो बस अपनी मस्ती में मस्त हैं। 


Tuesday, July 29, 2025

कोशिश

सुधा बहुत गुस्से में थी। उसने ठान ली थी कि आज सुनील को सबक सिखा के ही रहेगी। बहुत परेशान किया है उसने पिछले कुछ बर्षों में। आज बताती हूँ कि नारी-शक्ति क्या होती है। 

-  "madam, आप यह 1 बार पढ़ लीजिये।", advocate आनंद ने सुधा का ध्यान भंग किया। 

सुधा उन कागज़ के पन्नों को कई बार पढ़ चुकी थी। उसने जल्दी से 1 बार फिर से पढ़ा। इल्ज़ामों से भरे पन्ने और आखिर में सुधा की demands:  

        50 लाख नकद, 
        रहने के लिए 1 घर
        सारे गहने
        सुनील, उसके माता-पिता, उसकी बहन और भाई-भाभी पर मानसिक उत्पीड़न का मुकदमा  


   - जी वकील साहब, सब ठीक है, सुधा ने सर हिलाते हुए कहा। 

"मुझमें क्या कमी है? पढ़ी-लिखी हूँ, घर के काम भी करना जानती हूँ, देखने में भी ठीक ही हूँ। पता नहीं और क्या चाहिए उसको? ऐसे कैसे बच्चे को ले कर घर छोड़ कर चला गया?", बस यही सब सोच रही थी। 
सुधा के वकील आनंद साहब ने पहले ही सुधा को बता दिया था कि मानसिक उत्पीड़न के मामले में सुनील के घरवालों पर कोई मुकदमा नहीं बनता, क्योंकि घरवाले सुधा और सुनील से अलग शहर में रहते थे और घरवालों का ज्यादा आना-जाना भी नहीं था। परन्तु सुधा negotiation करने के लिए यह लिखवा दिया था। जब सुधा को कोई बात माननी पड़ेगी, तो वह उनके खिलाफ मुकदमा करने का point छोड़ देगी। पूरी तैयारी से आयी थी वह।  

-  "अपना case आ गया है। आ जाइए"advocate आनंद ने सुधा को courtroom में बुलाया। 

वहाँ पर सुनील अपने वकील शर्मा जी के साथ पहले से मौजूद था। शर्मा जी ने बोलना शुरू किया- 

Advocate शर्मा: "Judge madam, हम सबसे पहले आखिरी point पर बहस करना चाहेंगे। 

Mr. सुनील के परिवार वालों पर कोई मुकदमा नहीं बनता। वे ना तो इस शहर में रहते हैं और ना ही उनका सुधा-सुनील जी के घर कोई आना-जाना है। फ़ोन पर भी बस birthday वगैरह पर ही बात होती है। मेरी court से प्रार्थना है कि इस point को ख़ारिज किया जाये। 

सुधा advocate आनंद की ओर देख रही थी परन्तु advocate आनंद से कोई प्रतिक्रिया ना हुई। उन्होंने तो सुधा को यह लिखने के लिए पहले ही मना किया था। किसी प्रतिक्रिया के अभाव में judge madam ने advocate शर्मा का प्रस्ताव मान लिया। 

शर्मा जी ने आगे बोलना शुरू ही किया था, सुनील आगे बढ़ा और शर्मा जी को बीच में टोका। वह judge साहब के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा था।  

सुनील: मैडम, मुझे नहीं जानना कि मुझ पर कौन-कौन से इलज़ाम लगाए गए हैं। जो भी इलज़ाम हैं, उन सब को सच मान लिया जाये। आप मुझे जो सज़ा देना चाहें, दे सकते हैं। 

यह सुन कर सिर्फ सुधा ही नहीं बल्कि सुनील के वकील शर्मा साहब भी हैरान थे। ऐसे कैसे सुनील ने बिना कुछ जाने सब इलज़ाम कबूल कर लिए? सुनील ने आगे कहा -

सुनील: मैडम, आप मुझे जेल भेज दीजिये या कोई और कठोर सज़ा दीजिये। बस 1 बात - मैं सुधा को 1 पैसा भी नहीं दूंगा।

अब तो judge मैडम भी हैरान हो गई। 

जज मैडम: Mr. सुनील, आप जेल जाने को तैयार हैं, पर पैसे देने को नहीं! ऐसा क्यों? लोग तो जेल से बचने के लिए पैसा पानी की तरह बहा देते हैं, और आपको पैसों से इतना लगाव? ऐसा पैसा किस काम का?

सुनील: मैडम, मेरा मानना है कि ज़िंदगी में कुछ चीज़ें कमानी पड़ती हैं, आपको ऐसे ही नहीं मिल जाती -जैसे इज़्ज़त और पैसा। सुधा पढ़ी-लिखी है, smart है। आज 2 साल हो गए हमें अलग रहते हुए, फिर भी सुधा job नहीं करती। असली दिक्कत यही है - वह जिम्मेदारियाँ उठाने में नाकाम रही। आप खुद ही देख लीजिये, इन्होंने बच्चे की custody की भी मांग नहीं की है। मुझे अपने बचाव में कुछ नहीं कहना। मेरी आपसे प्राथना है कि आप मुझे जेल भेज दें, लेकिन सुधा को अपनी ज़िम्मेदारियाँ खुद उठानी होंगी। 


कुछ समय के लिए ख़ामोशी छायी रही। सुनील आगे बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसके शब्द जैसे गले से बाहर ही नहीं आ रहे थे। courtroom में सब उसी की तरफ देख रहे थे। आखिर सुनील हिम्मत जुटाई। सर झुका कर, हाथ जोड़ कर, बहुत झिझकते हुए, दबी आवाज़ में कहा- 

सुनील: या फिर ...  मुझे ... फ..फाँसी ... दे दीजिए। मेरी वसीयत ... सब कुछ ... सुधा का ही .... पर जब तक हो सकेगा ... मैं ... सुधा के लिए कोशिश करता रहूँगा।  

सुधा पूरी तरह से अचंभित थी। उसने सुनील को जेल भेजने का कभी नहीं सोचा था। वह किसी तरह अपने दिमाग और अन्तर्मन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थी। Advocate आनंद भी इसके लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने ऐसा case पहले कभी नहीं देखा था। उन्होंने जज मैडम से गुज़ारिश की -

Advocate आनंद: मैडम, हमें सोचने का थोड़ा time दीजिये। अगली तारीख .... 

सुधा ने Advocate आनंद को बीच में ही टोका और धीमी आवाज़ में कहा - नहीं मैडम, मुझे कुछ नहीं कहना।