आज शनिवार का दिन था। कॉलेज में छुट्टी होने के बावज़ूद, धूम मची थी। आज 15 साल के बाद कॉलेज अपने 1st batch की alumni meet कर रहा था। सब एक- दुसरे से मिल कर पागलों की तरह उत्साहित थे। DJ पर थिरकते पाँव और टकराते जाम ... कॉलेज का माहौल कुछ अलग ही था। सब लोग सजे-धजे अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में कॉलेज पहुँचे थे।
मैं, श्रवण कुमार, कॉलेज के बाद USA में settle हो गया था। कुछ साल job करने के बाद, मैंने अपनी खुद की company start कर ली थी। और USA की 1 renowned university में guest faculty के तौर पर भी नियुक्त था। Short में कहूँ तो मैं बहुत successful life जी रहा था। इसी कारण, आज की alumni meet में मैं 'Guest of Honor' भी था।
बहुत सारे juniors मेरे साथ selfie और कामयाब होने के tips ले रहे थे। मैं भी अपनी stardom का भरपूर मज़ा ले रहा था और खूब इठला रहा था। मैं बहुत लोगों के लिए प्रेरणास्रोत्र जो था।
इस सब के बाद मैं और मेरा जिगरी दोस्त - राहुल आपस में ही मग्न हो गए। हमारी बातें खत्म ही नहीं हो रही थी। राहुल तो जैसे अचंभित ही था। सब को मिल कर बहुत खुश था। उसके सब दोस्त नौकरी करने दूर निकल चुके थे - कोई Bangalore में था तो कोई मुंबई में। बस राहुल ही था जो इसी शहर में नौकरी कर रहा था। उसका घर इसी शहर में था। अपने बूढ़े माता-पिता को छोड़ कर नहीं जाना चाहता था। इसीलिए काबिल होने के बावज़ूद इस शहर में वो सब-कुछ हासिल नहीं कर पाया, जिसका वह हक़दार था। पर वह अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट था।
बहुत देर तक बातें करने के बाद -
राहुल: चल, घर चलते हैं। मेरी wife सुधा तुझ से मिल कर बहुत खुश होगी।
मैं राहुल के घर जाने में संकोच कर रहा था। परन्तु राहुल अपनी ज़िद पर अड़ा था। आखिर मुझे हार माननी पड़ी। राहुल की car को देख कर मेरा संकोच करना सही साबित हो रहा था। उसकी सफ़ेद Wagon-R काफी पुरानी और uncomfortable लग रही थी। उसका घर भी एकदम साधारण ही था। उसकी wife सुधा ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। सुधा को जैसे हमारे बारे में सब पता था। राहुल ने हमारे सब किस्से सुधा को सुना रखे थे। Time कैसे निकल गया, पता नहीं चला।
राहुल: चलो अब सो जाते हैं। हमें सुबह कहीं जाना है। तेरे लिए surprise है।
मैं अब ऐसे छोटे घर में रहने के आदि नहीं था। मैं तो बस इंतज़ार कर रहा था कि कब सुबह हो और मैं अपने hotel चला जाऊँ। लेकिन राहुल ने सुबह का भी plan बना रखा था। मैं यह सोच कर चुप था कि इतने वर्षों बाद राहुल को नाराज़ नहीं करना चाहिये। आखिर राहुल मेरा Best Friend था।
सुबह राहुल मुझे अपनी Wagon-R में शहर से दूर ले गया। मैं जब भी पूछता तो कह देता कि surprise है। आखिरकर 1 घंटे बाद राहुल ने car रोकी। यह एक school लग रहा था। देखने में बहुत छोटा और बहुत ही साधारण। जैसे ही हम gate से अंदर दाखिल हुए, 2-3 छोटे-छोटे बच्चे भाग कर राहुल से चिपक गए। और 3-4 बच्चे थोड़ी दूर खड़े हो कर हमें देख रहे थे, जैसे वो भी आना चाहते हों पर हिचकिचा रहे हों। सभी बच्चे राहुल से मिल कर बहुत खुश हो रहे थे।
राहुल: श्रवण, यह एक अनाथाश्रम है। तुम्हें याद है कि college के दिनों में तुझ में अनाथ बच्चों के लिए कुछ करने का कितना जज़्बा था? तेरे USA जाने के बाद, तेरी बातें याद आती रही। बस, उसी से प्रेरित हो कर मैंने ये आश्रम खोल दिया। जब भी इन बच्चों से मिलता हूँ, अजीब सा सुकून मिलता है। ऐसा लगता है जैसे तू मेरे साथ खड़ा है।
भावुक हो गया था, राहुल। मैं भी पूरी तरह से हतप्रभ रह गया। राहुल ना केवल अपना घर चला रहा था, बल्कि 10-15 और बच्चों का भरण-पोषण कर रहा था। राहुल को देख कर लगता नहीं था कि उसकी financial condition इतनी अच्छी है।
श्रवण: यार राहुल, इस सब के लिए तो बहुत पैसा चाहिए। कैसे manage करता है तू ये सब?
राहुल: चल, तुझे 1 और चीज़ दिखाता हूँ।
राहुल मुझे पास में ही 1 farmhouse पर ले गया।
राहुल: ये मेरा farmhouse है। इस से जो भी income होती है, उस से आश्रम का खर्च चल जाता है। तेरी भाषा में कहूँ तो आश्रम "self-sustainable mode" में है। और जो भी donations आते हैं, उस से कुछ और कमरे बनाने की सोच रहा हूँ।
श्रवण: पर 10-15 बच्चों के लिए काफी कमरे हैं। और क्यों चाहिए?
मेरा मन तो यह कहने को कर रहा था कि राहुल को बाकी पैसे अपने लिए खर्च करने चाहिए। परन्तु उसको बुरा ना लगे तो मैंने बात को घुमा कर पूछना ठीक समझा।
राहुल: यार, मेरा मन है की उन कमरों में 1 old-age home खोलूं। Senior citizens को बच्चों के साथ time बिताना बहुत अच्छा लगता है। बच्चों की शरारतों से उनका मन लगा रहेगा। तू क्या बोलता है?
मैं राहुल की दूरदर्शिता का कायल हो गया। मैं college से ही अनाथ बच्चों के लिए कुछ करना चाहता था। ज़िंदगी की दौड़ में यह सब पीछे छूट गया। इस 1 चीज़ ने मुझे राहुल के साथ फिर से जोड़ दिया। मेरे पूछने पर उसने अपने इस सफर की पूरी कहानी सुनाई। मैं 1 बच्चे की तरह उसकी कहानी में जैसे खो ही गया। समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। दोपहर हो चली थी। हम अब घर की ओर रवाना हो चुके थे।
श्रवण: राहुल, मैं भी इस नेक काम का हिस्सा बनना चाहता हूँ। मैं 50000/- donate करना चाहता हूँ।
राहुल: अरे!!! तू शुरू से ही इसका हिस्सा है। तेरी बातों से ही तो प्रेरित हो कर मैं यह सब कर पाया। Donation की जरूरत नहीं है। मैं donation के लिए तुझे यह सब नहीं दिखा रहा था। पैसों की कोई कमी नहीं है।
श्रवण: यार, बुरा मत मान। मेरा वह मतलब नहीं था। मैं तो बस ... खैर, जाने दे। ये बता कि अगर पैसों की कोई कमी नहीं है तो तू खुद पर खर्च क्यों नहीं करता। तू अच्छा बड़ा घर, अच्छी car etc. सब deserve करता है। या फिर सन्यासी हो गया है जो मोह-माया त्याग दी है?
राहुल के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गयी। कुछ पल मौन रहने के बाद बोला -
राहुल: मेरे सामने यह सवाल बहुत बार आया। तू मेरा जिगरी यार है, तुझे बता ही देता हूँ।
मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी। मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।
राहुल: इन बच्चों के पास कुछ नहीं है। ये मुझमें अपने पिता को देखते हैं। मैं नहीं चाहता की मेरे कपड़े, मेरी car और मेरी शान-ओ-शौकत, इन बच्चों को मुझसे दूर कर दें।
राहुल की बातें बहुत गहरी थी। उसकी सोच मेरी सोच से कई आगे थी। मैं तो खुद को ही तीस-मार-खां समझ रहा था, पर राहुल से मिल कर मेरा हकीकत से सामना हो गया। अब मैं उसके साथ बिलकुल भी uncomfortable नहीं था। उसकी Wagon-R अब मुझे किसी शाही सवारी से कम नहीं लग रही थी और मैं राहुल का प्रेरणास्रोत्र बन कर खूब इठला रहा था।