Friday, September 20, 2024

प्रेरणा

आज शनिवार का दिन था। कॉलेज में छुट्टी होने के बावज़ूद, धूम मची थी। आज 15 साल के बाद कॉलेज अपने 1st batch की alumni meet कर रहा था। सब एक- दुसरे से मिल कर पागलों की तरह उत्साहित थे। DJ पर थिरकते पाँव और टकराते जाम ... कॉलेज का माहौल कुछ अलग ही था। सब लोग सजे-धजे अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में कॉलेज पहुँचे थे। 

मैं, श्रवण कुमार, कॉलेज के बाद USA में settle हो गया था। कुछ साल job करने के बाद, मैंने अपनी खुद की company start कर ली थी। और USA की 1 renowned university में guest faculty के तौर पर भी नियुक्त था। Short में कहूँ तो मैं बहुत successful life जी रहा था। इसी कारण, आज की alumni meet में मैं 'Guest of Honor' भी था। 

बहुत सारे juniors मेरे साथ selfie और कामयाब होने के tips ले रहे थे। मैं भी अपनी stardom का भरपूर मज़ा ले रहा था और खूब इठला रहा था। मैं बहुत लोगों के लिए प्रेरणास्रोत्र जो था। 

इस सब के बाद मैं और मेरा जिगरी दोस्त - राहुल आपस में ही मग्न हो गए। हमारी बातें खत्म ही नहीं हो रही थी। राहुल तो जैसे अचंभित ही था। सब को मिल कर बहुत खुश था। उसके सब दोस्त नौकरी करने दूर निकल चुके थे - कोई Bangalore में था तो कोई मुंबई में। बस राहुल ही था जो इसी शहर में नौकरी कर रहा था। उसका घर इसी शहर में था। अपने बूढ़े माता-पिता को छोड़ कर नहीं जाना चाहता था। इसीलिए काबिल होने के बावज़ूद इस शहर में वो सब-कुछ  हासिल नहीं कर पाया, जिसका वह हक़दार था। पर वह अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट था। 

बहुत देर तक बातें करने के बाद -

राहुल: चल, घर चलते हैं। मेरी wife सुधा तुझ से मिल कर बहुत खुश होगी। 

मैं राहुल के घर जाने में संकोच कर रहा था। परन्तु राहुल अपनी ज़िद पर अड़ा था। आखिर मुझे हार माननी पड़ी। राहुल की car को देख कर मेरा संकोच करना सही साबित हो रहा था। उसकी सफ़ेद Wagon-R काफी पुरानी और uncomfortable लग रही थी। उसका घर भी एकदम साधारण ही था। उसकी wife सुधा ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। सुधा को जैसे हमारे बारे में सब पता था। राहुल ने हमारे सब किस्से सुधा को सुना रखे थे। Time कैसे निकल गया, पता नहीं चला। 

राहुल: चलो अब सो जाते हैं।  हमें सुबह कहीं जाना है। तेरे लिए surprise है। 

मैं अब ऐसे छोटे घर में रहने के आदि नहीं था। मैं तो बस इंतज़ार कर रहा था कि कब सुबह हो और मैं अपने hotel चला जाऊँ। लेकिन राहुल ने सुबह का भी plan बना रखा था। मैं यह सोच कर चुप था कि इतने वर्षों बाद राहुल को नाराज़ नहीं करना चाहिये। आखिर राहुल मेरा Best Friend था। 

सुबह राहुल मुझे अपनी Wagon-R में शहर से दूर ले गया। मैं जब भी पूछता तो कह देता कि surprise है। आखिरकर 1 घंटे बाद राहुल ने car रोकी। यह एक school लग रहा था। देखने में बहुत छोटा और बहुत ही साधारण। जैसे ही हम gate से अंदर दाखिल हुए, 2-3 छोटे-छोटे बच्चे भाग कर राहुल से चिपक गए। और 3-4 बच्चे थोड़ी दूर खड़े हो कर हमें देख रहे थे, जैसे वो भी आना चाहते हों पर हिचकिचा रहे हों। सभी बच्चे राहुल से मिल कर बहुत खुश हो रहे थे। 

राहुल: श्रवण, यह एक अनाथाश्रम है। तुम्हें याद है कि college के दिनों में तुझ में अनाथ बच्चों के लिए कुछ करने का कितना जज़्बा था? तेरे  USA जाने के बाद, तेरी बातें याद आती रही। बस, उसी से प्रेरित हो कर मैंने ये आश्रम खोल दिया। जब भी इन बच्चों से मिलता हूँ, अजीब सा सुकून मिलता है। ऐसा लगता है जैसे तू मेरे साथ खड़ा है।

भावुक हो गया था, राहुल। मैं भी पूरी तरह से हतप्रभ रह गया। राहुल ना केवल अपना घर चला रहा था, बल्कि 10-15 और बच्चों का भरण-पोषण कर रहा था। राहुल को देख कर लगता नहीं था कि उसकी financial condition इतनी अच्छी है।

श्रवण: यार राहुल, इस सब के लिए तो बहुत पैसा चाहिए। कैसे manage करता है तू ये सब?

राहुल: चल, तुझे 1 और चीज़ दिखाता हूँ। 

राहुल मुझे पास में ही 1 farmhouse पर ले गया। 

राहुल: ये मेरा farmhouse है। इस से जो भी income होती है, उस से आश्रम का खर्च चल जाता है। तेरी भाषा में कहूँ तो आश्रम "self-sustainable mode" में है। और जो भी donations आते हैं, उस से कुछ और कमरे बनाने की सोच रहा हूँ। 

श्रवण: पर 10-15 बच्चों के लिए काफी कमरे हैं। और क्यों चाहिए?

मेरा मन तो यह कहने को कर रहा था कि राहुल को बाकी पैसे अपने लिए खर्च करने चाहिए। परन्तु उसको बुरा ना लगे तो मैंने बात को घुमा कर पूछना ठीक समझा। 

राहुल: यार, मेरा मन है की उन कमरों में 1 old-age home खोलूं। Senior citizens को बच्चों के साथ time बिताना बहुत अच्छा लगता है। बच्चों की शरारतों से उनका मन लगा रहेगा। तू क्या बोलता है?

मैं राहुल की दूरदर्शिता का कायल हो गया। मैं college से ही अनाथ बच्चों के लिए कुछ करना चाहता था। ज़िंदगी की दौड़ में यह सब पीछे छूट गया। इस 1 चीज़ ने मुझे राहुल के साथ फिर से जोड़ दिया। मेरे पूछने पर उसने अपने इस सफर की पूरी कहानी सुनाई। मैं 1 बच्चे की तरह उसकी कहानी में जैसे खो ही गया। समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। दोपहर हो चली थी। हम अब घर की ओर रवाना हो चुके थे। 

श्रवण: राहुल, मैं भी इस नेक काम का हिस्सा बनना चाहता हूँ। मैं 50000/- donate करना चाहता हूँ। 

राहुल: अरे!!! तू शुरू से ही इसका हिस्सा है। तेरी बातों से ही तो प्रेरित हो कर मैं यह सब कर पाया। Donation की जरूरत नहीं है। मैं donation के लिए तुझे यह सब नहीं दिखा रहा था। पैसों की कोई कमी नहीं है। 

श्रवण: यार, बुरा मत मान। मेरा वह मतलब नहीं था। मैं तो बस ... खैर, जाने दे। ये बता कि अगर पैसों की कोई कमी नहीं है तो तू खुद पर खर्च क्यों नहीं करता। तू अच्छा बड़ा घर, अच्छी car etc. सब deserve करता है। या फिर सन्यासी हो गया है जो मोह-माया त्याग दी है?

राहुल के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गयी। कुछ पल मौन रहने के बाद बोला -

राहुल: मेरे सामने यह सवाल बहुत बार आया। तू मेरा जिगरी यार है, तुझे बता ही देता हूँ। 

मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी। मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। 

राहुल: इन बच्चों के पास कुछ नहीं है। ये मुझमें अपने पिता को देखते हैं। मैं नहीं चाहता की मेरे कपड़े, मेरी car और मेरी शान-ओ-शौकत, इन बच्चों को मुझसे दूर कर दें।   


राहुल की बातें बहुत गहरी थी। उसकी सोच मेरी सोच से कई आगे थी। मैं तो खुद को ही तीस-मार-खां समझ रहा था, पर राहुल से मिल कर मेरा हकीकत से सामना हो गया। अब मैं उसके साथ बिलकुल भी uncomfortable नहीं था। उसकी  Wagon-R अब मुझे किसी शाही सवारी से कम नहीं लग रही थी और मैं राहुल का प्रेरणास्रोत्र बन कर खूब इठला रहा था। 



Monday, January 22, 2024

Choice

Such a meaningful post from tennis start Sania Mirza.

Marriage is hard, Divorce is hard.
Choose your Hard.

Obesity is hard, Being fit is hard.
Choose your Hard.

Being in debt is hard, Being financially disciplined is hard.
Choose your Hard.

Communication is hard, No communication is hard.
Choose your Hard.

Life will never be easy. It will always be hard. But we can choose our Hard.

Pick wisely.


Wednesday, December 20, 2023

Courier Service

I am regular in sending the stuff through courier. I have my own challenges in taking the service from the current courier companies. I am wondering if some company could launch a revolutionary courier service that offers a complete new experience to the customers. 

In general, I would like that company to address my below concerns:

1. The courier tariff should be cost effective.

2. The tariff should be standardized and should be published on public domains. Customers should know the tariff in advance. Today, different courier companies offer different prices. Not only that, different offices of the same company may offer you different prices. And if you know the person personally then you may get a better price.

3. Should have options of selecting the frills for cost effectiveness. For example, if I need to send a simple letter which is not very urgent, I should be able to take the basic service without frills like expedited delivery, tracking etc. Current courier companies charge min 150/- to 200/- for sending even a letter.

4. If not all then at-least the basic services should be provided 24x7. Currently, courier can be booked only during business hours of the courier offices.

5. There should be prepaid option so that business houses can pay in advance and send someone on their behalf to book the courier. It is like a pre-paid card. I load the card for say 1000/- and keep on paying for the services using that card. Instead of using the card, the courier company can offer the printed coupons instead of card to save the cost. You can give those coupons to someone as ask him/her to do the job on your behalf. If the tariff is standardized as mentioned in point 2, this option would be very effective. 

6. The service should cover even the remote areas without digging hole in the customer's pocket. It includes both domestic and international regions. I can understand that quality of service may degrade little bit in case of remote areas.

7. Should have good chain of their offices in urban areas as well as country side.

8. Though I don't have the requirement of other services, but they can offer some add-ons like sending money, govt. backed investment schemes, life insurance etc. It will help them generating more revenue and due to large coverage as per above point, these services can be availed by everyone.

After a lot of search, I found a suitable courier company in my neighborhood. If this company has the office in your neighborhood, would you like to consider them for your next courier? What if I tell you that this courier company already exists? 

It is nothing but Indian Postal Services. For points 4 and 5, they offer postage stamps. Which we can stick to our courier and drop them in the drop-boxes (letter boxes).  These drop boxes are available 24x7. The tariffs are also affordable.

Despite all of these features, Indian Postal Services are incurring losses. Reason is best known to all of us. So, next time you want to send the courier, consider them and give them a chance to serve you. I am sure that you would not be able to ignore them.

Happy posting ...

Tuesday, August 22, 2023

कामयाबी

आज का दिन मेरे लिए बहुत ख़ास था। आज alumni meet में 15 साल बाद मैं अपने दूसरे-पहले छात्रों से मिलने जा रहा था। नहीं, आपने ठीक पढ़ा है - "दूसरे-पहले छात्र" ही लिखा था मैंने। Retirement के बाद, नए school में मेरी पहली class इन्हीं छात्रों की थी। तो यह हो गए मेरी दूसरी inning में मेरे पहले छात्र - मेरे "दूसरे-पहले छात्र"। 


मुझे वह दिन भुलाये नहीं भूलता - जैन school में मेरा पहला दिन। मेरी नियुक्ति PT teacher के तौर पर हुई थी। 58 वर्ष की आयु में यह मेरी दूसरी inning की शुरुआत थी। मुझे ग़ुमान था अपने बलिष्ठ शरीर पर जो मैंने इस उम्र में भी maintain कर रखा था। पहले दिन मुझे 9-D में जाना था। जब मेरे कदम उस class की तरफ़ बढ़े, मुझे तभी एहसास हो गया की यह class कुछ अलग होने वाली है। PT का period आते ही बच्चे उधम मचाने लगते हैं और शोर मचाते हुए खेलने दौड़ते हैं। लेकिन इस class के बाहर इतना सन्नाटा था जैसे class खाली हो। मैंने दरवाज़े को हल्का सा खोला और अंदर झाँका - class खचा-खच भरी हुई थी। सभी 60-65 लड़के अपनी-अपनी किताबें खोल कर पढ़ाई कर रहे थे। दरवाज़ा हल्का सा ही खुला था परन्तु, लड़कों ने मुझे तुरंत देख लिया। जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुआ, सब छात्र "class stand" में खड़े हो गए। मैंने अपना परिचय दिया - 

मैं आपका नया PT teacher हूँ, आप मुझे 'डोगरा sir' बुला सकते हैं। 

Class से कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। मैंने पहले दिन थोड़ा सख्त रुख अपनाया और चिल्ला कर कहा - क्या किताबों में घुसे पड़े हो? मेरी उम्र तक आते आते तुम्हारा शरीर जवाब दे देगा। चलो ground में !!

Class monitor को कह कर, मैं sports room से उनके लिए football लेने चला गया। Football ले कर जब मैं ground में पहुँचा तो भौचक्का रह गया!!! Ground खाली था। सब बच्चे कहाँ चले गए? इन्होंने अपने teacher की बात भी नहीं मानी? मैं गुस्से से तिलमिला रहा था। थोड़ा आगे बढ़ कर देखा तो बच्चे ground के side पर लगे पेड़ों के नीचे बैठे अपनी किताबों से पढ़ाई कर रहे थे। मैं सन्न रह गया। मेरे कहने के मुताबिक सब बच्चे ground में आ गए थे, लेकिन मैंने उन्हें खेलने को तो बोला ही नहीं था। मैं बच्चों से मायूस होने के साथ-साथ हैरान भी था। चूंकि आज मेरा पहला दिन था, मैंने अपने गुस्से को काबू किया और सोचा बच्चों से बात की जाये। मैंने बच्चों के पास जा कर उनसे पूछा - 

- क्या हुआ? सब लोग पढ़ाई क्यों कर रहे हैं? खेलना पसंद नहीं है?

जवाब मिला- सर, अगले period में science का test है। 

- हम्म्म। ठीक है। कौन से सर पढ़ाते हैं science ?

        - जी, गुप्ता सर। 

मेरी उनसे आज की मुलाकात इतनी ही थी। मैंने staffroom जा कर गुप्ता सर से बात की। 

-सर, यह 9-D के लड़के बहुत अकड़ू लगते हैं। 

गुप्ता सर: क्यों, क्या हुआ?

मैंने उनको पूरी बात बताई। 

    - अरे डोगरा सर, यह 9-D है। यह बच्चे केवल 1 बात में विश्वास रखते हैं - पढ़ाई करके अव्वल आना और खूब नाम कमाना। एक और बात पर गौर कीजियेगा - इतना competition होने के बाद भी इनमें एकता और भाई-चारे की कोई कमी नहीं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले साल 10th board में इन्ही में से कोई बच्चा state में top करेगा। 

मैं गप्ता सर की यह बातें सुन कर हैरान था। अपने जीवन के 35 साल की नौकरी में मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था। आपको हर class में कुछ पढ़ाकू बच्चे मिल जाते हैं, पर यहाँ तो पूरी की पूरी class ही पढ़ाकू थी !!! गुप्ता सर के कहने पर मैं इस class को observe करने लगा। मैंने पाया की यह बच्चे कुछ अलग ही मिट्टी के बने हैं। Teachers का निरादर तो ये सोच भी नहीं सकते। अगर कोई teacher कुछ बोल दे तो तुरंत उनकी बात मान लेते हैं। आपस में इतना लगाव कि क्या बतायूं। अगर किसी के test में कम marks आ जाएं तो पहले तो दोस्त उस पर बिगड़ जाते और फिर उसको lesson समझा भी देते। कुछ बच्चे साधारण परिवारों से थे, तो कुछ संपन्न परिवारों से। परन्तु जब ये साथ होते तो बिना किसी औपचारिकता के बस दोस्त होते। मुझे हैरानी इस बात पर थी कि 60-65 बच्चे एक-जैसे कैसे हो सकते हैं? क्या यह कोई चमत्कार था? जो भी हो, यह बात तो तय थी की ये बच्चे अपने जीवन में बहुत कामयाब होंगे और खूब नाम कमाएंगे - सिर्फ अपनी पढ़ाई की वजह से ही नहीं, बल्कि अपने व्यवहार की वजह से भी। 



---- वर्तमान ----

Alumni meet का time 5 बजे का था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो बाकी teachers पहले ही आ चुके थे। बच्चों के शोर से उनके उत्साह का अंदाज़ा हो रहा था। यह बच्चे पहले से बदल चुके थे। किसी के बाल कम हो गए थे तो किसी का पेट निकल आया था। अपने दोस्तों से मिल कर ऐसे खुश हो रहे थे जैसे किसी बच्चे को कोई नया खिलौना मिल गया हो। हमें देख कर सब शाँत हो गए और हम सब teachers को चरण-स्पर्ष किया। आज भी अपने teachers के लिए वही सम्मान था इन में। 

कार्यक्रम शुरू हुआ। सब बच्चों ने अपना अपना परिचय देना शुरू किया। 

विवेक: Sirs, मेरा नाम विवेक है। मैं university में zoology का professor हूँ। 

इतने में अमन खड़ा हो कर ज़ोर से बोला - Sirs, यह संशोधन (research) करता है, और वह भी मकड़ियों पर। उन पर किताब भी लिख चुका है। 

सब लोग ठहाका मार कर हँस दिए। अब बारी सुनील की थी। 

सुनील: मेरा नाम सुनील है। मैं मुंबई की एक IT कंपनी में कार्यरत हूँ। 

अभिषेक(अपनी जगह पर खड़ा हो कर): Sirs, यह अपनी कंपनी में manager है। इसका 1 पैर विदेश में ही रहता है। 

सब लोग फिर से हँस पड़े। यह सिलसिला चलता रहा। जब भी कोई अपना परिचय देता, उसका कोई दोस्त खड़ा हो कर उसके बारे में और विस्तार से बताता। अनोखी बात यह थी कि सब को अपने से ज्यादा अपने दोस्तों की उपलब्धियों पर गर्व था। इनमें कोई bank manager था, तो कोई architectकुछ doctor थे, तो कुछ engineer ; कुछ विदेश में बस चुके थे तो कुछ business कर रहे थे। इनको देख कर समझ में आता था कि पैसा, शौहरत, तरक्की बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कुछ और है जो इस सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर यह बात सब को समझ आ जाए तो दुनिया का रंग कुछ और ही हो। 

करीब 2 घंटे का कार्यक्रम अब खत्म हो चला था। सब बच्चे ऐसे उदास हो रहे थे जैसे इनके अपने शरीर का कोई अंग अलग हो रहा हो। 15 साल बाद भी एक-दूसरे के लिए इतना प्यार!! इनकी कामयाबी इसी में तो थी। मेरे मन से यही दुआ निकली कि ऐसी बुद्धि, साफ मन और कामयाबी - भगवान सब को दे।


Thursday, July 27, 2023

Indian Kitchen

I have traveled to few countries as part of my job and I noticed that kitchen in every country is different. The ingredients, the utensils, the process of cooking, even the set-up of the kitchen - everything changes with culture. That forced me to think about the unique things of Indian kitchen. Those things which are common in India but are unique from rest of the globe. 


Stainless Steel: Indian kitchens are full of stainless steel utensils. Here I am not referring only to the cookware but the utensils in which we serve and eat food. Where other countries have ceramic plates and glassware, we Indians use stainless steel plates and tumblers in our daily life.


Katori: Also referred as baati or vaati. It is a small bowl that is used to take a serving of any curry or liquid item. Like you can take a portion of dal or yogurt in katori to avoid it mixing with other food items in your plate. It is so required by the Indians that now ever fine dining restaurants have started providing these unlike the resent past. It is worth mentioning that in our daily lives, we use the katoris made of stainless steel 😀


Mixer Grinder and Pressure Cooker: You can refer these by their short names - Mixi and Cooker respectively. Any Indian kitchen is not complete without these 2 gadgets. I share an interesting experience with you. I took a service apartment on lease in Singapore. Before shifting there, I asked the agent that if he is OK to provide a couple of items if the apartment doesn't have those. My question was generic and I didn't have any specific item in my mind. The agent (he was from Singapore origin) quickly responded that he will not provide mixer-grinder due to its high costs. He definitely was well aware of Indian cooking .... LOL.


Milk: Well, milk itself is not unique to India or Indian kitchen but the way it is treated, makes it quite unique. We Indians believe less in skimmed or low fat milk and prefer to buy full cream milk. Then the processing of milk starts. First, we boil the milk. Then we remove the cream from it. After that we blend the cream in mixer and extract butter from it. Then add lemon juice to the leftover liquid to extract paneer .... is it too much to digest? It must be confusing for those who are not used to this process. A diagram will make it easier.




Don't be surprised that all the products mentioned in the diagram are consumed in most of the houses. To add little more spice to the story, the above list of the milk products is not complete. I didn't mention some products like khoya (maava) in the diagram simply because I am not aware of the process.

Another thing to note is that, Indians prefer to boil the milk even if it is already pasteurized😃

Cooking Gas: It is not a unique concept in itself unless you look into this from a different angle. In western countries, the electric burners are also common. So, you don't get surprised if the kitchen has cooking gas or electric burner. But in India, the presence of electric burner is rare and almost every kitchens has cooking gas - LPG or natural gas for cooking.  The induction or the hot plate is used as a backup option. The advantage of cooking gas is to get almost instant temperature control. When you increase or decrease the gas flow, you almost instantly see the difference in the temperature of the vessel and thus can control the cooking immediately. It is very helpful in some specific instances like boiling the milk. 

It is worth mentioning that India is progressing fast in laying the gas pipeline. Just like water and electricity, the gas comes directly from the distribution center to the kitchen. The consumption is measured using a gas meter and invoice is generated according to the consumption. How cool is that !!!


Wheat flour: Though the most common and popular staple food of the world is rice however, we Indians use rotis made of wheat flour as another staple food. If you have never seen a roti then it is quite similar to the tortillas. In other countries, the fine wheat flour (maida), white in color, is more common. But in India, every kitchen would have the whole wheat flour (atta) in the stock. It is generally brown in color. The difference in color is insignificant but it makes it really different is that atta is much more nutritious than maida

Fresh food: Though the time is changing but still, the fresh food is preferred in Indian kitchens than the frozen/packed food. Western world is more inclined to buying frozen/packed food like meat, cut vegetables and fruit. Indians still want to buy fresh vegetables/meat from market and cook them. You will not get anything more than 1 week old in the fridge of an Indian kitchen. I mentioned 1 week considering that the couple is too busy to buy vegetables more frequently. If any household can buy more frequently then you will get more and more fresh vegetables in their kitchen.

Vegetarian food: As per the statistics, 70% of the world's vegetarian population comes from India. Not that Indians do not eat meat but even a hardcore non-vegetarian will not eat meat for all his meals in the week. Eating vegetables, grains, pulses, dairy etc. is part of everyone's diet. It is for the same reason, you will never have dearth of vegetarian food in Indian kitchens. In fact, some non-veg dishes have been converted to vegetarian when they traveled to India. Examples - biryani, kabab, burger, hot-dog and yellow/green/red Thai curries. If you want to try veg food across India, I believe, you will never be able to taste all vegetarian dishes in your lifetime. You cannot get this variety of vegetarian food anywhere else in the world. India is not called the "Paradise for vegetarian food lovers" for no reason.

Magic Masala: India is known for its spices and flavors. However, there is a peculiar thing you would notice in Indian kitchens. Every kitchen will have a home made masala (spice/flavor) that is unique in itself. For all practical purpose you can consider it as Magic Masala. It would be a combination of multiple flavors. When you add it in the specific food (the food items for which it was made), the taste would improve magically.  If you take the recipe and try to replicate, you cannot exactly replicate it. Only moms and grand moms know how to make it. Example: My mother make a masala by mixing salt, black rock salt and few other spices. You add it in lemonade, lassi or yogurt and voila !! ....  ambrosia is ready.


Disclaimer: My observation is based on my travel and experience. It shouldn't be generalized.



Tuesday, July 11, 2023

मेरी व्यथा

मैं एक बैरागी की तरह हूँ। ना मेरा कोई घर है, ना कोई देश; ना कोई धर्म और ना ही मेरी कोई लालसा। किसी परिंदे की तरह पूरा संसार ही मेरा है। ना मेरा कोई अपना है, ना ही किसी से कोई बैर। मैं तो बस अपना पेट भरने के लिए आपसे इतना भोजन लेता हूँ, जैसे सागर से 1 बूँद पानी। मैं उस भिक्षुक की तरह हूँ जो जगह-जगह घूम कर भोजन मांगता है और अगर दुत्कार दिया जाए, तो भूखा ही रह जाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं दिखने में भिक्षुक जैसा नहीं हूँ। और अगर भोजन दिख जाये तो मैं 1 बूँद जितना भोजन बिना किसी की सहमति के ही ले लेता हूँ। जैसे अच्छाई-बुराई, चल-अचल, शाकाहारी-मांसाहारी सभी कुदरत की देन हैं, वैसे ही मुझे कुदरत ने ऐसा बनाया है।


मैं गाना अच्छा गा लेता हूँ। परन्तु मेरे शरीर का आकार इतना छोटा है कि मेरी आवाज़ आप तक पहुँच ही नहीं पाती। और जब मैं अपनी आवाज़ सुनाने आपके करीब आता हूँ तब आप मुझे दूर भगा देते हैं।
 
आपने कहानियों में सुना-पढ़ा होगा कि अगर कोई भूखा रोटी चुराता है, तो उसको चोर नहीं कहते। तो फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों? इतनी कि मुझे देखते ही लोग मुझे जान से मार देना चाहते हैं - ज़हर दे कर, रौंद कर या पीट कर। आप ही बतायें कि अगर कोई आपके भण्डार से अनाज का 1 दाना ले ले, तो क्या उसका कत्ल कर देना न्याय है? क्या मेरा कुरूप होना इतना बड़ा अभिषाप है कि मुझे जीने का भी हक़ नहीं? किसी अदालत में मेरी कोई सुनवाई क्यों नहीं?

मैं सिर्फ 1 मच्छर ही तो हूँ, जनाब!!!


 

Monday, June 12, 2023

Super Woman

जुलाई के महीने में आज सुबह बादल घिर आए थे। मौसम सुहाना हो गया था। मैं भी सुबह 7 बजे सैर करने निकल गया। व्यस्त होने की वजह से, कभी कभी ही जा पाता हूँ। आज मौसम ने मुझे मजबूर कर ही दिया था। 

जैसे ही पार्क में दाखिल हुआ, सामने से Saxena साहब आते दिखाई दिए। अक्सर पार्क में वो सुबह सैर करते मिल जाते हैं। बहुत पाबंध हैं सैर के मामले में। मैंने उनको हाथ हिला कर इशारा किया। 

        - और Kulkarni साहब, कैसे हैं? बहुत दिनों बाद?

Saxena साहब ने गर्म-जोशी से हाथ मिलाया और हम साथ में सैर करने लगे। आज मुझे वह कुछ अलग लग रहे थे। चाल में वही फुर्ती, बातों में वही जोश, लेकिन फिर भी कुछ तो था जो मुझे खटक रहा था। सैर करते करते हम दोनों ने बहुत बातें की - cars, investments, बच्चों की पढ़ाई, politics वग़ैरह वग़ैरह। पर फिर भी मेरा ध्यान बार-बार उसी कमी पर जा रहा था जो दिखाई नहीं दे रही थी, परन्तु महसूस हो रही थी। 

कुछ देर सैर करने के बाद हम एक bench पर बैठ गए। उनका चेहरा सामने से देखने पर मुझे मेरा उत्तर मिल गया था। उनके चेहरे पर झुर्रियां आने लगी थी, आँखों में गिढ़ थी - शायद घर से निकलते समय मुँह नहीं धोया था। उनसे पसीने की दुर्गंध आ रही थी। अब मैं थोड़ा uncomfortable हो रहा था। पहले तो मैं संकोच करता रहा, पर फिर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपने अंदाज़ में कहा -

- लगता है office में बहुत काम है। 

        - है तो ! पर आपको कैसे अंदाज़ा हुआ ?

- आपके चेहरे पर थकान नज़र आ रही है। और आज deodorant लगाना भी भूल गए। 

        - Oh sorry. बेटे के लिए breakfast और school का tiffin बना रहा था।  Late हो रहा था, तो जल्दी-जल्दी में रह गया। 

बहुत सहज भाव में Saxena साहब ने नाखूनों से आटा साफ़ करते हुए कहा। उनको कोई शर्मिंदगी नहीं थी। उनकी पत्नी का देहान्त होने के बाद वह ही घर संभाल रहे थे। उनकी दुनिया थी बस 1 बेटा, जो 10th class में पढ़ रहा था। 

आपको पिछले महीने promotion भी मिली थी। आप इतना काम कैसे कर लेते हैं? घर, office, investments, बेटे की ज़िम्मेदारी, दुनियादारी और अपनी सेहत भी  - सब इतनी अच्छी तरह कैसे संभाल लेते हो ?  

        - क्यों ? सब working women भी तो इतना काम करती हैं !! आप मुझे working woman ही समझ लीजिये। 


मुझे तो जैसे झटका लग गया हो। यह बात कभी इस तरह सोची ही नहीं थी मैंने। 


- Saxena साहब, आप तो बहुत modest हो रहे हो। माना कि working women हम पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं, पर, घर के बाकी सदस्य भी तो कुछ ना कुछ काम करते हैं। जैसे  मेरे घर में investments, banking,किराने का सामान लाना, घर  और car/scooter की repair etc. सब मैं ही देखता हूँ। आपको ना ladies वाली facilities और ना gents वाली, और काम सारा का सारा। आप normal working woman नहीं, आप तो SUPER WOMAN हो। 


हम दोनों ठहाका मार कर हंस दिए। पर अब मौसम बदल चुका था, बादल छंट चुके थे। अब मुझे उनकी झुर्रियां नहीं बल्कि उनकी determination, आँखों में गिढ़ नहीं, बल्कि चमक दिख रही थी। उनकी पसीने की दुर्गंध अब मेहनत की महक में बदल चुकी थी। मैंने माहौल को हल्का करने के लिए topic को थोड़ा बदला। 


- आपके हाथ की दाल-मखनी का तो जवाब नहीं। आपके promotion की दाल-मखनी आज भी याद है मुझे। 

        - अरे, ऐसा कुछ नहीं है। कोशिश करके जैसा-तैसा खाना बना लेता हूँ। But, thanks for the compliment. 

- अब दिल्ली वाली दाल-मखनी तो यहाँ मिलने से रही। पर आपकी दाल-मखनी उससे कम भी नहीं। 

        - अगर ऐसी बात है तो Sunday को आप सपरिवार घर आ जाइये। दाल-मखनी ही बनाएंगे। 
        - चलो Kulkarni साहब, अब चलता हूँ। तैयार हो कर office भी जाना है। 

Saxena साहब ने मुझसे हाथ मिला कर विदा ली। मैं तो अपने आप को ही व्यस्त मान रहा था, पर Saxena साहब को देख कर समझ में आया की 'व्यस्तता' किस चिड़िया का नाम है।  उनको देख कर यह पंक्तियाँ बार-बार याद आ रही थी - 

रोज़ चल पड़ता हूँ गमछा उठा कर,
मेरी जिम्मेदारियाँ मुझे थकने नहीं देती। 

 

मैं भी Saxena साहब से प्रेरित हो कर अपने घर की ओर चल पड़ा, एक नए mission की शुरुआत करने - घर के कामों में अपनी पत्नी का हाथ बटाने। उसे super woman से वापिस normal woman बनाने।