जुलाई के महीने में आज सुबह बादल घिर आए थे। मौसम सुहाना हो गया था। मैं भी सुबह 7 बजे सैर करने निकल गया। व्यस्त होने की वजह से, कभी कभी ही जा पाता हूँ। आज मौसम ने मुझे मजबूर कर ही दिया था।
जैसे ही पार्क में दाखिल हुआ, सामने से Saxena साहब आते दिखाई दिए। अक्सर पार्क में वो सुबह सैर करते मिल जाते हैं। बहुत पाबंध हैं सैर के मामले में। मैंने उनको हाथ हिला कर इशारा किया।
- और Kulkarni साहब, कैसे हैं? बहुत दिनों बाद?
Saxena साहब ने गर्म-जोशी से हाथ मिलाया और हम साथ में सैर करने लगे। आज मुझे वह कुछ अलग लग रहे थे। चाल में वही फुर्ती, बातों में वही जोश, लेकिन फिर भी कुछ तो था जो मुझे खटक रहा था। सैर करते करते हम दोनों ने बहुत बातें की - cars, investments, बच्चों की पढ़ाई, politics वग़ैरह वग़ैरह। पर फिर भी मेरा ध्यान बार-बार उसी कमी पर जा रहा था जो दिखाई नहीं दे रही थी, परन्तु महसूस हो रही थी।
कुछ देर सैर करने के बाद हम एक bench पर बैठ गए। उनका चेहरा सामने से देखने पर मुझे मेरा उत्तर मिल गया था। उनके चेहरे पर झुर्रियां आने लगी थी, आँखों में गिढ़ थी - शायद घर से निकलते समय मुँह नहीं धोया था। उनसे पसीने की दुर्गंध आ रही थी। अब मैं थोड़ा uncomfortable हो रहा था। पहले तो मैं संकोच करता रहा, पर फिर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपने अंदाज़ में कहा -
- लगता है office में बहुत काम है।
- है तो ! पर आपको कैसे अंदाज़ा हुआ ?
- आपके चेहरे पर थकान नज़र आ रही है। और आज deodorant लगाना भी भूल गए।
- Oh sorry. बेटे के लिए breakfast और school का tiffin बना रहा था। Late हो रहा था, तो जल्दी-जल्दी में रह गया।
बहुत सहज भाव में Saxena साहब ने नाखूनों से आटा साफ़ करते हुए कहा। उनको कोई शर्मिंदगी नहीं थी। उनकी पत्नी का देहान्त होने के बाद वह ही घर संभाल रहे थे। उनकी दुनिया थी बस 1 बेटा, जो 10th class में पढ़ रहा था।
- आपको पिछले महीने promotion भी मिली थी। आप इतना काम कैसे कर लेते हैं? घर, office, investments, बेटे की ज़िम्मेदारी, दुनियादारी और अपनी सेहत भी - सब इतनी अच्छी तरह कैसे संभाल लेते हो ?
- क्यों ? सब working women भी तो इतना काम करती हैं !! आप मुझे working woman ही समझ लीजिये।
मुझे तो जैसे झटका लग गया हो। यह बात कभी इस तरह सोची ही नहीं थी मैंने।
- Saxena साहब, आप तो बहुत modest हो रहे हो। माना कि working women हम पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं, पर, घर के बाकी सदस्य भी तो कुछ ना कुछ काम करते हैं। जैसे मेरे घर में investments, banking,किराने का सामान लाना, घर और car/scooter की repair etc. सब मैं ही देखता हूँ। आपको ना ladies वाली facilities और ना gents वाली, और काम सारा का सारा। आप normal working woman नहीं, आप तो SUPER WOMAN हो।
हम दोनों ठहाका मार कर हंस दिए। पर अब मौसम बदल चुका था, बादल छंट चुके थे। अब मुझे उनकी झुर्रियां नहीं बल्कि उनकी determination, आँखों में गिढ़ नहीं, बल्कि चमक दिख रही थी। उनकी पसीने की दुर्गंध अब मेहनत की महक में बदल चुकी थी। मैंने माहौल को हल्का करने के लिए topic को थोड़ा बदला।
- आपके हाथ की दाल-मखनी का तो जवाब नहीं। आपके promotion की दाल-मखनी आज भी याद है मुझे।
- अरे, ऐसा कुछ नहीं है। कोशिश करके जैसा-तैसा खाना बना लेता हूँ। But, thanks for the compliment.
- अब दिल्ली वाली दाल-मखनी तो यहाँ मिलने से रही। पर आपकी दाल-मखनी उससे कम भी नहीं।
- चलो Kulkarni साहब, अब चलता हूँ। तैयार हो कर office भी जाना है।
Saxena साहब ने मुझसे हाथ मिला कर विदा ली। मैं तो अपने आप को ही व्यस्त मान रहा था, पर Saxena साहब को देख कर समझ में आया की 'व्यस्तता' किस चिड़िया का नाम है। उनको देख कर यह पंक्तियाँ बार-बार याद आ रही थी -
मैं भी Saxena साहब से प्रेरित हो कर अपने घर की ओर चल पड़ा, एक नए mission की शुरुआत करने - घर के कामों में अपनी पत्नी का हाथ बटाने। उसे super woman से वापिस normal woman बनाने।