Thursday, May 27, 2021

Two Plus

 
It was Sunday morning. I noticed 1 tire of my car had a puncture. As it was Sunday, the shops near my apartment were closed. I thought of giving it a try and rode my bike to check that. I found 1 bicycle repair shop open.

Me: 4 wheeler ka puncture lagate ho? (Do you fix puncture of 4 wheeler?)

Mechanic: Haan naa. (Of course.)

Me: Kitna lete ho? (How much do you charge?)

Mechanic: 2+ hai? (Is it two plus?)


I was confused. I could not understand his question. Was he asking about Two Plus? What was that? Is it a mathematical equation? Is it some new technology that I wasn't aware of? Or is he referring to 4 wheeler vehicle as 2+ (after all he is a bicycle mechanic)? Or did he mean something else and I misheard him?

Me: Kya? (What?)

Mechanic: 2+ hai kya? (Is it two plus?)

Now I was not just confused but completely baffled. There was no way that I could ask him to say that again. The engineer within me didn't want to acknowledge that there is something about my car that I was not aware of. More important, the engineer didn't want to look stupid in front of a bicycle mechanic. The safe option was just to say yes. He could anyways figure out after looking at the tire.

Me: Hmm ... haan (Hmm ... yes)

Mechanic: Haan, lagate hain naa. (Yes, we fix the puncture).

And he pointed his finger. I looked in that direction. There was something written in Hindi. I started reading that. 

"Yaha tubeless puncture lagaye jaate hain" (We fix tubeless punctures here).

Oh boy!!! The new technology the mechanic was talking about was not "Two Plus" but  "Tubeless". I nodded my head without any expressions on my face and turned towards my bike. I was trying hard to control my Tsunami like laughter. On the other side, the engineer within me took a sigh of relief.



Thursday, May 13, 2021

Marathon

 We are super excited today. A marathon race was announced in our school that will be held exactly after 1 month. When I told my friends that we should participate, they immediately agreed. My mom told me once that we should  pursue our careers according to our strengths. I believe that I can become a good leader.   I already made 2 followers   and I believe that remaining few millions are just a matter of time. 

I asked them if we should practice for marathon every morning and go for  jogging. Vikas immediately agreed. Rohit refused because he wanted to conserve his energy for the marathon.  His idea sounds great. But I lost 1 follower out of   2. I and Vikas decided to go for jogging at 6 AM. And that the one who wakes up first will go to the other person's home to wake him up. It was a fool proof plan not to miss the practice.

I kept sleeping till 6.15 AM. Vikas also didn't come. As a good leader, I should lead my followers by setting good example. I got ready and went to his house at 6.30 AM. I can tell you from my experience that you can earn most brownie points from your friend's parents by  vising   him    while he is still asleep.  

 

My dad once told me that planning is most important thing. Big tasks take a lot of time in planning. We decided to make the plan for our workout. We were fast as our  plan was ready in just 1 week. 

 

We followed this plan for rest of the month. As a good leader, I was giving Vikas longer turn while I was sitting on the bench so that he could become stronger. Rohit also joined us occasionally. Probably he noticed how strong we were becoming and that he was going to loose from us. 

Soon both of realized that we needed shoes like Olympians have. Probably those  shoes could make us run few extra kilometers. That day I discovered that all the parents are same as the request of new shoes was declined by everyone's parents. 


All 3 of us reached school before time on the marathon day. It was Sunday. The clap sound was loud and clear.  The starting point turned into clouds of dust. We started with full excitement. I was able to cross the gate of  the playground and reached  the corner of the street. I was panting badly. My feet were hurting. I took some rest and looked back for Vikas and Rohit. They were in the similar situation. But no one noticed because there was no one behind us. Our parents should be held responsible as they didn't buy us those shoes.  

Rohit spotted Jain uncle's car. He lives in our neighborhood.  We communicated using the sign language and settled in his car quickly. We were still panting loudly. Jain uncle was kind enough to drop us near the end point. And we crossed the  finishing line easily.  

We covered 7 KM marathon in just 15 min. I don't know why this was not featured in  world records. As a good leader,  I will  take this matter to the organizers. 





Sunday, May 9, 2021

गुनाहगार

सूरज भी अब अपने घर की तरफ रुख कर चला था। साँझ जितनी काली थी, उतनी ही डरावनी भी। चौपाल पर जमघट लगा था। दुलारी सुबक-सुबक कर रो रही थी। सुबह से ही उसका बुरा हाल था। एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई। ना तो वह मानसिंह के साथ रह सकती थी और ना ही उसके बिना। 2 बच्चों को ले कर अकेली करेगी क्या? कैसे जियेगी? कैसे पालेगी बच्चों को? इसका जवाब तो महिला आयोग वालों के पास नहीं था लेकिन वे लोग दुलारी का पक्ष ले कर मानसिंह को खूब सुना चुके थे। महिला आयोग की बिमला मैडम तो यूं अपनी धाक जमाए बैठी थी, मानो वो ही सरपंच हो। पिछले कुछ दिनों में दुलारी और पंचों पर पूरी तरह से दबाव बना रखा था। अब तो बस पंचायत के फैसले का इंतज़ार था।  

चौधरी साहब ने मानसिंह की ओर देखा। वह तो बस अपनी गर्दन झुकाए और मुठियां भींचे खड़ा था। गाँव के सबसे समझदार लोगों में गिनती होती है मानसिंह की। फिर अपनी पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार? गाली-गलौच तक तो फिर भी यकीन कर सकते हैं पर मार-पीट!!! यह तो हद हो गई थी। उसके गुस्से की गवाह तो पड़ोसन छाया भी थी। छाया दुलारी के घर पर ही थी जब काम से आते ही मानसिंह ने दुलारी को उसके सामने ही फटकार लगायी थी। दुलारी कई दिन तक छाया से नज़र नहीं मिला पाई थी। देखो तो इस निर्लज को - माथे पर शिकन तक नहीं।

"अब सोच क्या रहे हो चौधरी साहब? अपना फैसला सुनाइये।" बिमला मैडम ने रौबदार आवाज़ में कहा। 

"तो यह तय रहा। दुलारी दोनों बच्चों के साथ इसी घर में रहेगी। मानसिंह हर महीने 5000/- खर्चे के लिए दुलारी को देगा। इस गाँव में आने की इजाज़त नहीं है। पैसे किसी के हाथ भिजवा देगा। और अगर उसने ऐसा नहीं किया तो पुलिस में शिकायत की जाएगी। "

"क्या कह रहे हैं चौधरी साहब? इतना पैसा तो उसकी कमर तोड़ देगा! कैसे देगा वह इतने पैसे हर महीने? और खुद कहाँ रहेगा? इतना तो बहुत ज्यादा है। कुछ तो रहम करो।" बब्बन तिलमिला कर बोला।  

"अरे शुक्र करो की पुलिस में नहीं दे दिया इसको। सारा जीवन चक्की पीसता रहता।" बिमला मैडम टूट पड़ी बब्बन पर। 

"पंचों ने फैसला सुना दिया है। रात हो चुकी है। मानसिंह को आज रस्सी से बाँध कर रखा जाए।  मौका मिलने पर बैल भागने की कोशिश करता है। बब्बन, तुम्हें ही इसकी पहरेदारी करनी होगी। कल सुबह इसको गाँव से निकाल दिया जायेगा।" चौधरी साहब ने कड़क आवाज़ में कहा। 

"हाँ हाँ ! पूरा गाँव देखेगा की इस्त्रियों से बद्तमीज़ी करने का क्या अंजाम होता है!" बिमला मैडम ने अपनी जीत का डंका बजा दिया था।

मानसिंह के हाथ रस्सी से बाँध दिए गए। बब्बन ने रस्सी पकड़ी और मानसिंह को ले कर चल पड़ा। मानसिंह चुप-चाप बब्बन के पीछे पीछे चल रहा था। 
 
"यार , तूने अपने बचाव में कुछ कहा क्यों नहीं? खुल कर बोला होता तो यह सब नहीं होता। तेरी समझदारी तो पुरे गाँव में मशहूर है। और सब जानते हैं, दुलारी की किसी से नहीं बनती। सजने-सवरने के सिवा और करती क्या है पूरा दिन? और तेरी पीठ पर जो चिमटे का निशान है, वह क्यों नहीं दिखाया तूने? तू कुछ बोलता क्यों नहीं? कुछ बोलेगा भी?"

"बब्बन, तू तो मेरा दोस्त है। सब जानता है। मुझे तो बस बच्चों की चिंता है। दुलारी को कहाँ फुरसत की वो बच्चों को देखे। सुंदर होने का घमंड ही उसका साथी है। मेरा क्या है? काम के साथ-साथ घर और  बच्चों को संभालने से  मुझे तो आदत सी हो गयी है। मेरे जितना काम यहाँ करता था, उतना ही शहर जा के कर लूंगा। पर पता नहीं बच्चे मेरे बिना कैसे रह सकेंगे? उनको पढ़ाएगा कौन, खाना कौन देगा? दुलारी अपने घमंड में उनकी ज़िंदगी ना खराब कर दे !" कोल्हू के बैल की तरह पिसने जा रहा था शहर, और वो भी बिना दुलारी से कोई उम्मीद किये।  

दोनों बस चले जा रहे थे। जल्दी से जल्दी घर जो पहुँचना था। चलते चलते नदी तक पहुँच गए। नदी के किनारे जा कर रुक गया मानसिंह। पैर दुखने लगे थे उसके। दोनों थोड़ी देर वहीं बैठ गए। मानसिंह नदी की ओर टक-टकी लगाए देख रहा था। इस बार तो पानी भी खूब उफान मार रहा था। पिछले साल की बाढ़ में कच्चा पुल भी टूट गया था। अगर कोई गिर जाए तो बस ... हो गया काम। 

"पता नहीं क्या सोच रहा है मानसिंह? हे भगवान कहीं .... नहीं नहीं  भगवान, ऐसा करने से रोक दो उसे !" 

बब्बन थोड़ा घबराया और फिर हाथ आगे बढ़ा कर उसने मानसिंह की रस्सी खोल दी। मानसिंह ने अपना कुर्ता उतार दिया, और फिर पैजामा। नदी पार करने के लिए कूद गया। बब्बन थोड़ी देर तक वहीं खड़ा नदी की ओर देखता रहा और मन में प्रार्थना करता रहा कि मानसिंह उस ओर पहुँच जाए।